रंग बिखर रहे हैं, लोग झूम रहे हैं, महामारी का ज़ोर कम हुआ है, तो बंधन टूटे और निकल पड़ी टोलियाँ रंगो का त्यौहार मनाने। उड़ते रंगो में गुजिया का स्वाद, और आलू पापड़ का साथ, ख़ुशियाँ दुगनी कर देता है। और इस ख़ुशी के मौक़े पर विश्व हिन्दी ज्योति ने अपनी त्रैमासिक पत्रिका “हिंदी कौस्तुभ” का अगला अंक “ऋतुराज विशेषांक” इस उद्देश्य के साथ प्रकाशित किया है कि इसके जरिये हम लोगों को हिंदी और उसकी महिमा से रूबरु करा सकें। यह पत्रिका हिन्दी भाषा प्रेमियों को एक मंच प्रदान करती है जहाँ वह अपनी बात अपने ढंग से कह सकते हैं। फिर चाहे वह शब्दों के माध्यम से व्यक्त करी जाए या किसी और कला के माध्यम से। हमारी भाषा हमारी पहचान है और हमें हमारी माटी से जोड़े रहती है। विश्व हिन्दी ज्योति के सभी सदस्यों ने इस प्रयास में अपना भरपूर योगदान दिया है। कृपया इस पत्रिका को ज़्यादा से ज़्यादा लोगों तक पहुँचायें और अपनी प्रतिपुष्टि अवश्य प्रदान करें। अगर आप या आपके बच्चे भी लिखते हैं तो अपनी रचनाएँ आप vihijpatrika@gmail.com पर भेज सकते हैं।