जून का महीना, गर्मी का मौसम, आम की बहार, खिलते फूल, स्कूल की छुट्टी और, शाम को छतों पर हँसी का मेला।
काले घने बादलों की आस और धरती की प्यास, झूला झूलने की होड़ और बारात में सजने की चाह।
इतना अलबेला हैं ये गर्मी का मौसम।
जहाँ सारा विश्व महामारी से जूझ रहा है वहीं ये मौसम कुछ नयी उम्मीदें लेकर आया है। फिर से घरों के बंद दरवाज़े खुल रहे हैं और महफ़िलें सज रही हैं। इस हँसी ठिठोली के बीच हमारी विश्व हिन्दी ज्योति की त्रैमासिक पत्रिका हिन्दी कौस्तुभ का द्वितीय अंक उड़ान विशेषांक प्रकाशित हो रहा है। ये पत्रिका सिर्फ़ हमारे विश्व हिन्दी ज्योति के सदस्यों तक ही सीमित नहीं है बल्कि हर हिन्दी प्रेमी का दर्पण है। यहाँ हर कोई अपने विचारों को अपने ढंग से हिन्दी भाषा के ज़रिए पूरे विश्व में पहुँचा सकता है। विश्व हिन्दी ज्योति हमें हमारी माटी के निकट ले आती है। सम्पूर्ण विश्व में हिन्दी उत्थान की तरफ़ ये हमारा एक छोटा सा प्रयास है। कृपया इस पत्रिका को ज़्यादा से ज़्यादा लोगों तक पहुँचायें। आप पत्रिका के विषय में अपनी प्रतिक्रिया इस वेबपृष्ठ के माध्यम से या vihijpatrika@gmail.com पर भेज सकते हैं। आगामी अंकों के लिए आप अपनी रचनायें भी vihijpatrika@gmail.com पर भेज सकते हैं।