विश्व हिन्दी ज्योति की स्थापना सन २०११ में संयुक्त राज्य अमेरिका के कैलिफ़ोर्निया प्रांत में हुई थी।
विश्व हिन्दी ज्योति अमेरिका में बसे हिन्दी प्रेमी प्रवासी भारतीयों का एक समूह है तो हिन्दी भाषा की सेवा में समर्पित है। हिन्दी साहित्य के पितामह समझे जाने वाले श्री भारतेन्दु हरिशचन्द्र कहते हैं –
निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल।
बिन निज भाषा-ज्ञान के, मिटत न हिय को सूल।।
विविध कला शिक्षा अमित, ज्ञान अनेक प्रकार।
सब देसन से लै करहू, भाषा माहि प्रचार।।
अर्थात् “उन्नति अपनी भाषा (मातृभाषा) में होती है, क्योंकि यह सभी उन्नतियों का मूल है। मातृभाषा के ज्ञान के बिना, हृदय के विषादों का नहीं मिटाया जा सकता है। कला, शिक्षा और विभिन्न प्रकार के ज्ञान को सभी देशों से लिया जाना चाहिए, लेकिन इसका प्रचार अपनी मातृभाषा में ही किया जाना चाहिए।”

विश्व हिन्दी ज्योति संस्था का भी यही विचार है की यदि हमें अपनी और अपनी संस्कृति की उन्नति करनी है तो हमें अपनी भाषा को ना केवल बचाना हो अपितु इसको विश्वस्तरीय भाषा बनाने की दिशा में काम करना होगा।
हम लोग हिन्दी की सेवा के लिए विभिन्न प्रकार के कार्य कर रहे हैं, जैसे निशुल्क हिंदी पाठशाला, ई-पत्रिका, मासिक गोष्ठियाँ, कवि सम्मेलन, हिन्दी की विभिन्न विधाओं पर कार्यशालाएँ, सांस्कृतिक कार्यक्रम और प्रतियोगिताओं द्वारा जन सामान्य की हिन्दी में रुचि-वृद्धि करना इत्यादि।
हमारी संस्था सही मायनों में विश्व स्तर की संस्था है। हमारे सदस्य विश्व के विभिन्न देशों से आते हैं और हम सब मिल कर हिन्दी की उन्नति के लिए प्रयत्न करते हैं और हिन्दी का उत्सव मनाते हैं। हमारे सदस्यों का हिन्दी प्रेम मेरे लिखे इस दोहे से साफ़ विदित होता है।
हिन्दी को तो जानिए, अक्षय और अशेष।
चाहें हिन्दी को सदा, दर्जा मिले विशेष।।
अगर आप हमारे साथ इस अभियान में जुड़ना चाहते हैं तो कृपया हमें सम्पर्क करें।