गुरु हमारे जीवन में एक विशेष स्थान रखते हैं और अनेक रूपों में आते हैं। कभी शिक्षक के रूप में तो कभी माता-पिता के रूप में, कभी बंधु बनकर तो कभी हमराही बनकर। न तो गुरु की कोई उम्र होती है न शिक्षा गृहण करने का कोई अंत। गुरु का मान करना हमारा कर्तव्य हैं और शिक्षा प्राप्त करना और सदा धर्म के रास्ते पर चलना हमारा उत्तरदायित्व। हम सबके जीवन को अनेक गुरुजनों ने हमारे वर्तमान स्वरूप में ढाला है। हमारा उन सबको शत शत नमन करते हैं।
विश्व हिन्दी ज्योति, जो हिन्दी के उत्थान में सक्रिय है, ने आज अपने गुरुजनों की याद में अपनी त्रैमासिक पत्रिका “हिन्दी कौस्तुभ“ का तृतीय अंक प्रकाशित किया है। यह पत्रिका हिन्दी भाषा प्रेमियों को एक मंच प्रदान करती है जहाँ वो अपनी बात अपने ढंग से कह सकते हैं। हमारी भाषा हमारी पहचान है और हमें हमारी माटी से जोड़े रहती है। विश्व हिन्दी ज्योति के सभी सदस्यों ने इस प्रयास में अपना भरपूर योगदान दिया है. कृपया इस पत्रिका को ज़्यादा से ज़्यादा लोगो तक पहुँचाये और अपने प्रतिपुष्टि ज़रूर प्रदान करें। आप अपनी रचनायें vihijpatrika@gmail.com पर भेज सकते है। आगामी अंकों के लिए आप अपनी रचनायें भी vihijpatrika@gmail.com पर भेज सकते हैं।

मैं जयश्री बिरमी,अहमदाबाद से हूं,मेरी रचनाओं के प्रकाशन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।कृपया आपने जो लिंक्स ईमेल की थी मुझे वह दुबारा ईमेल कीजिए,मैंने शायद गलती से डिलीट कर दिया है🙏
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