फागुन आया और चारों तरफ खुशियों के रंग बिखर गये। जहाँ दिलो में होली खेलने का उल्लास हैं, वही घरों में पकवान बनाने का जोश। रिश्तों ने अपने दरवाज़े खोल दिये और यारों की टोलियाँ निकल पड़ीं।
जहाँ चारों तरफ रंगो की धूम हैं वही विश्व हिन्दी ज्योति ने हिन्दी के उत्थान की तरफ एक और प्रयास किया है। होली के इस पावन अवसर पर विश्व हिन्दी ज्योति ने अपनी त्रैमासिक पत्रिका, हिन्दी कौस्तुभ, का प्रथम अंक, रंग विशेषांक, इस उद्देश्य के साथ प्रकाशित किया है कि इसके जरिये हम लोगों को हिन्दी और उसकी महिमा से रूबरू करा सकें। ये पत्रिका हिन्दी भाषा प्रेमियों को अपनी बात अपने ढंग से कहने का एक मंच प्रदान करती है। यहाँ वो जो चाहें कह सकते हैं, फिर चाहे वो शब्दों के माध्यम से कहा जाए या किसी और कला के माध्यम से।
हमारी भाषा हमारी पहचान है और हमें हमारी माटी से जोड़े रहती है। विश्व हिन्दी ज्योति के सभी सदस्यों ने इस प्रयास में अपना भरपूर योगदान दिया है। कृपया इस पत्रिका को ज़्यादा से ज़्यादा लोगों तक पहुँचायें और अपनी प्रतिक्रिया अवश्य प्रदान करें। आप अपनी प्रतिक्रिया इस वेब पृष्ठ के माध्यम से या vihijpatrika@gmail.com पर भेज सकते हैं।
रंगो का त्यौहार, भूले बिसरे रिश्तों का मिलन। खुशियों का साथ, हिन्दी कौस्तुभ का लोकार्पण।।